द इंटरप्रेटर
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में काम करने वाली सीनियर अनुवादक सिल्विया ब्रूम एक दिन गलती से एक हत्या की साजिश की बात सुन लेती है और उसकी यह बात सुरक्षा एजेंसियों तक पहुँचती है। अनुवाद और भाषा की सूक्ष्मताओं के साथ बुनी हुई यह कहानी विश्वास और शक के बीच झूलती है, जहां शब्दों के अर्थ ही घटनाओं की दिशा बदल सकते हैं। सिल्विया का रहस्य और उसका पुराना राजनीतिक अतीत धीरे-धीरे सामने आता है, जिससे हर पात्र की मंशा संदिग्ध दिखने लगती है।
अमेरिकी सीक्रेट सर्विस का एजेंट टॉबिन केलर नियुक्त किया जाता है ताकि वे इस खतरे की तह तक पहुँचें और स्थिति का आकलन करें। केलर और सिल्विया के बीच की बातचीत में मनोवैज्ञानिक तनाव, संवेदनशील विवेचना और भावनात्मक जटिलताएँ उभरकर आती हैं। फिल्म में सुरक्षा प्रोटोकॉल, कूटनीति और व्यक्तिगत नैतिकता के बीच के संघर्ष को नाटकीय तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिससे दर्शक लगातार अनुमान लगाने को विवश रहता है कि असली खतरा कौन है।
कुल मिलाकर यह एक सस्पेंस-थ्रिलर है जो सत्ता, भाषा और सत्य के बीच के रिश्ते की पड़ताल करती है। शहर के दिल में बसी यह कहानी बता देती है कि कैसे एक अकेली आवाज पूरे राजनीतिक तंत्र की नींव हिला सकती है और किन हालात में व्यक्ति को अपने और समाज के बीच न्याय करने के लिए कठोर फैसले लेने पड़ते हैं।
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