The Girl in the Park
पंद्रह साल पहले अपनी तीन साल की बेटी के अचानक गायब हो जाने के बाद एक माँ जीवनभर के आघात और निरंतर अनिश्चितता में जी रही है। उसने अपने अलग हुए पति और अब जवान बेटे से दूरी बना ली है, और हर दिन उस खोई हुई बच्ची की यादें और पछतावे के साथ गुज़रता है। उसकी दुनिया धीरे-धीरे बंद और कठोर हो चुकी है, पर भीतर की वे पुरानी चोटें अभी भी ताजा हैं।
एक दिन उसकी ज़िंदग़ी में एक परेशान और रहस्यमय युवती आ जाती है, जिसकी पृष्ठभूमि धुंधली और जटिल है। उस मुलाकात से माँ के भीतर पुरानी भावनात्मक घाव उभर आते हैं और एक तार्किकता के परे, बढ़ती हुई उम्मीद जगती है कि शायद यही वही बेटी है जिसे उसने इतने साल पहले खो दिया था। यह उम्मीद धीरे-धीरे उसकी सोच और व्यवहार को प्रभावित करने लगती है, रिश्तों में दरारें और भ्रम पैदा होता है।
फिल्म शोक, अपराधबोध और पहचान की सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक पड़ताल है जो दिखाती है कि कैसे अनसुलझे दर्द इंसान को अपूर्ण फैसलों और अटूट उम्मीदों की ओर धकेल देता है। यह कहानी वीडियो-छवि और भावनात्मक प्रदर्शन के माध्यम से यह सवाल उभारती है कि क्या हमारी यादें और चाहतें असली को बदल सकती हैं, और क्या प्यास कभी पूरी हो सकती है जो सालों से भीतर पार कर रही हो।
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