एक उत्साही स्वयंनिर्धारित इतिहासकार अपने दृढ़ विश्वास और अन्वेषण की लगन से उन अवशेषों की तलाश में निकलती है जिन्हें पाँच सौ वर्षों से गुम माना जा रहा था। वह अकादमिक संस्थानों की अनदेखी और समाज की झिझक के बावजूद खोज के हर पहलू को चुनौती देती है, फील्डवर्क, स्थानीय दंतकथाएं और पुरानी अभिलेखों को जोड़कर सच्चाई के टूटते हुए टुकड़ों को एक साथ पिरोती है। फिल्म में उसकी व्यक्तिगत जिद और वैज्ञानिकता के बीच की टकराहट, साथ ही धीमे-धीमे मिलने वाली सफलता की उम्मीदों को संवेदनशीलता से दिखाया गया है।
कहानी केवल एक कब्र की खोज तक सीमित नहीं रहती; यह विश्वास, न्याय और ऐतिहासिक उत्तरदायित्व की भी कहानी है। जब निष्कर्ष सामने आते हैं, तो न केवल इतिहास के पाठ बदलते हैं बल्कि उन लोगों की जिद और कड़े संघर्षों की भी जीत होती है जिन्होंने सच्चाई के लिए लड़ाई लड़ी। यह फिल्म दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि इतिहास को किसने परिभाषित किया है और सच्चाई को उजागर करने के लिए कितनी हिम्मत चाहिए।