पिता की मृत्यु के बाद, भाई और बहन अपनी नई पारिवारिक हालात से दो-चार होते हैं जब उनकी पालक माँ उन्हें एक अनजान नवजात भाई या बहन से मिलाती है। शुरुआत में यह मिलन उम्मीद और सहज संवेदनाओं के साथ होता है, लेकिन धीरे-धीरे छोटी-छोटी बातों में कुछ भेद दिखने लगता है। परिवार के टूटे हुए ताने-बाने, दोनों की आपसी लय और बचपन की स्मृतियाँ इस नए रिश्ते में प्रवेश करती हैं और साथ ही पुरानी चोटें उभर आती हैं।
जैसे-जैसे सचाई की परतें खुलती हैं, पालक माँ का एक भयानक राज़ सामने आता है जो परिवार की वर्तमान पहचान और भविष्य को खतरे में डाल देता है। फिल्म रिश्तों की नाज़ुकता, भरोसे की कीमत और भूली-बिसरी घटनाओं के उभरते अँधेरों को नाटकीयता से पेश करती है, जहां हर संवाद और हर मूक क्षण संभावित खतरे का संकेत बन जाता है। अंत तक दर्शक के मन में सवाल बना रहता है कि क्या परिवार एक साथ बच पायेगा या यह राज़ सब कुछ बिखेर देगा।