Next of Kin
लिंडा को एक पुराना रिटाइरमेंट होम विरासत में मिलता है जो बाहर से शांत और सुरक्षित दिखता है, पर उसके अंदर कुछ गहरे और परेशान करने वाले संकेत छुपे होते हैं। छोटे-छोटे अजीब घटनाएँ—टूटते हुए दरवाज़े, रहस्यमय आवाजें और निवासियों के अचानक बदलते व्यवहार—धीरे-धीरे उसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर छा जाती हैं। शुरुआत में वह इसे बूढ़े लोगों की अजीब आदतें और उम्र के असर के रूप में ठुकराती है, पर घटनाएँ बढ़ती जाती हैं और उनका पैटर्न साफ़ दिखाई देने लगता है।
घर के निवासी भी किसी रहस्य को अपने अंदर दबाए हुए हैं; कुछ भय से चुप हैं, कुछ अतीत की ज़ख्म लेकर चलते हैं। दस्तावेज़, पुराने रिकॉर्ड और पुरानी घटनाओं की झलकियाँ लिंडा को उस जगह के अतीत तक खींच लाती हैं, जहाँ एक अकथनीय बुराई ने सालों पहले जड़ें जमा ली थीं। स्टाफ़ की अस्पष्ट व्याहारिकताएँ और पड़ोसियों की अनदेखी लिंडा के लिए खतरे की घंटी बन जाती हैं—हर सच्चाई उजागर होने पर घर और भी अधिक अस्थिर हो जाता है।
जैसे-जैसे लिंडा सच्चाई के करीब आती है, डर और अकेलेपन की सीमा धुंधली पड़ने लगती है। वह न केवल अपने लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी लड़ती है जिन्हें उसने परिवार जैसा माना था। संघर्ष में भरोसे हमले और आत्म-बलिदान के क्षण आते हैं, और हर मोड़ पर वह अपनी सीमाओं को परखती है। आख़िरकार सामना न केवल बाहरी भय से होता है बल्कि अंदर छिपे हुए दुःख और गहरे रिश्तों के टूटने से भी।
फिल्म एक धीमी, कसाव भरी थ्रिलर है जहाँ माहौल और मनोवैज्ञानिक दबाव को प्राथमिकता दी गई है। रहस्य और अनिश्चितता के बीच, दर्शक यह महसूस करते हैं कि कुछ बुराइयाँ सिर्फ़ दिखाई नहीं देतीं—वहें जिए भी जाती हैं। अंत चाहे जितना भी स्पष्ट या अस्पष्ट हो, कहानी के बाद घर की खामोशी और उन आवाज़ों की अनुनाद लंबे समय तक दिल पर ठहरती है।
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