1933 में जापानी शासन के अधीन क्योँगसोंग की सड़कों पर भय और अनिश्चितता छाई रहती है। शहर में पांच ऐसे लोगों पर शक किया जाता है कि वे अंग्रेज़ी में "Phantom" कहे जाने वाले एक anti-Japanese संगठन के जासूस हैं। हर पड़ाव पर निगाहें, हर बातचीत में संदेह और हर कदम पर संभावित ख़तरा—फिल्म उस संवेदनशील दौर की घनी मनोवैज्ञानिक दबाव-स्थिति को पकड़ती है जहाँ मित्र और शत्रु के बीच की रेखाएँ धुंधली हो जाती हैं।
कहानी समुदाय, पहचान और बलिदान की कसौटी पर मानवों को परखती है: कौन सच्चा है, कौन चालबाज़, और किसकी वफादारी किसके लिए है। जाँच और प्रतिशोध की मिश्रित धारा में पात्रों के छिपे हुए अतीत और कमजोर रिश्ते खुलते हैं, जिससे दर्शक लगातार यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि प्रतिरोध की कीमत अंततः क्या होती है।