The Tingler
1959 की यह साइंस-हॉरर फिल्म एक जिज्ञासु पैथोलॉजिस्ट के अजीब शोध पर आधारित है, जो यह साबित करना चाहता है कि इंसान की मृत्यु कभी-कभी भय से भी हो सकती है। उसकी खोज एक अनोखे जीव पर टिकी होती है, जिसे वह "द टिंगलर" नाम देता है — एक ऐसा सूक्ष्म प्राणी जो मेरुदंड के पास रहता है और मनुष्यों में खौफ बढ़ने पर सक्रिय होता है। उस प्रयोग का प्रमुख विषय एक बहर-गूँगा और चीख न पाने वाला महिला रोगी है, जिसके साथ किए गए प्रयोगों से भय और बचाव के बीच का रहस्य खुलकर सामने आता है।
जैसे-जैसे शोध आगे बढ़ता है, यह पता चलता है कि चीख मारना उस प्राणी की सक्रियता को दबा देता है; चीख न आने पर टिंगलर अंदर से दबाव बनाकर व्यक्ति को मौत के कगार पर ले आता है। फिल्म में वैज्ञानिकता और अंधेरे अंधविश्वास का मेल एक रोमांचक कशमकश पैदा करता है, जहाँ प्रयोगशाला के दृश्य, अचानक उत्तेजक पल और मानवीय संवेदनाओं की कसौटी बार-बार देखने वाले को झकझोर देती है। पात्रों के नैतिक द्वंद्व और डर को नियंत्रित करने की कोशिशें कहानी में लगातार तनाव बनाए रखती हैं।
यह फ़िल्म केवल भौतिक भय ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक तनाव और इंसानी प्रतिक्रियाओं की परतों को भी उजागर करती है। 1950 के दशक की हॉरर शैली की तरह इसमें विज्ञान और सेंसशनलिज्म का मिश्रण मिलता है, जो दर्शक के भीतर यह सवाल छोड़ जाता है कि भय कितनी हद तक खतरनाक हो सकता है और क्या किसी स्पष्ट चीख के बिना हम अपने अंदर के खौफ को काबू में रख पाते हैं।
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