夢と狂気の王国
The Kingdom of Dreams and Madness (2013) स्टूडियो घिबली के पर्दे के पीछे की दुनिया में गहराई से झाँकती है। फिल्म खास तौर पर हायाओ मियाज़ाकी, इसाओ ताकाहाता और तोशियो सुज़ुकी के रोज़मर्रा के काम, संवाद और संघर्षों को कैद करती है, जिससे दर्शक उन जिजीविषा और आदर्शों से रूबरू होते हैं जो घिबली की कहानियों को जन्म देते हैं। कैमरे को मिलने वाली निकटता काम की बारीकियों—स्केच, पटकथा-विचार, रिकॉर्डिंग सत्र और ऑफिस की अनौपचारिक चर्चाओं—को सहज और सहज रूप में दिखाती है।
फिल्म में मियाज़ाकी के तीव्र और जिज्ञासु रचनात्मक दृष्टिकोण और ताहाकाता की शांत, परंतु समर्पित शैली के बीच का अंतर साफ़ दिखाई देता है। एक ओर मियाज़ाकी "द विंड राइज़" पर काम करते हुए दिखाई देते हैं, तो दूसरी ओर ताहाकाता "द टेल ऑफ़ द प्रिंसेस कागुया" पर अपनी सूक्ष्मता और धैर्य के साथ जुटे होते हैं; बीच-बीच में सुज़ुकी की प्रोडक्शन से जुड़ी चुनौतियाँ और स्टूडियो के रोज़मर्रा के संशय भी सामने आते हैं। यह सब मिलकर रचनात्मक प्रक्रिया की खराबी, हास्य और संवेदनशीलता को जीवंत बनाते हैं।
दिखाई गई अनौपचारिक बातचीत, झड़पें और गर्मजोशी से भरे लम्हे फिल्म में एक तरह की मानवीय गहराई जोड़ते हैं जो केवल एनिमेशन प्रेमियों के लिए ही नहीं, बल्कि किसी भी कलाकार या कहानीकार के लिए प्रेरणास्पद है। यह फिल्म निश्चित रूप से उस विरासत और उस मनोबल का जश्न है जिसने दशकों तक अद्वितीय कहानियाँ पैदा कीं और साथ ही उम्र, स्वास्थ्य और परंपरा के सवालों पर चिंतन भी कराती है।
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