Graveyard Shift
जॉन हॉल एक भटका हुआ मुसाफिर है जो मेन के एक छोटे से कस्बे में आता है और रोजी-रोटी के लिए किसी भी काम को तैयार हो जाता है। उसे कस्बे की सबसे बड़ी टेªक्सटाइल मिल में भर्ती किया जाता है, जहाँ उसकी ड्यूटी "ग्रेवयार्ड शिफ्ट" — आधी रात से सवेरे तक — लगती है। थकान और अनिश्चितता के बीच, यह काम उसे उम्मीद और कुछ सुरक्षा का अहसास देता है, पर मिल की काली दीवारों के पीछे कुछ और भी छिपा रहता है।
रात की ड्यूटी में उसे कुछ और कर्मचारियों के साथ बेसमेंट साफ़ करने का जिम्मा सौंपा जाता है। शुरुआत में काम सरल और रुटीन सा लगता है, लेकिन जैसे-जैसे वे गहराई में उतरते हैं, वातावरण में अजीब सी घुटन और डर का एहसास बढ़ता जाता है। बेसमेंट की संकरी गलियाँ, गंदी मशीनरी और पुरानी गंध काम करने वालों की हड्डियाँ ठंडा कर देती है।
फिर अचानक, अँधेरों में कुछ असाधारण और भयानक प्राणी की उपस्थिति का एहसास होता है — एक ऐसी रचना जो शब्दों से परे है और जिसे पकड़ने का एक ही उद्देश्य है: उन्हें निगल जाना। साथी कर्मचारी एक-एक कर डर और आतंक में फँसते हैं, बचने की हर कोशिश विफल होती दिखती है, और मिल खुद एक जीवंत दुःस्वप्न बन कर उभरता है।
फिल्म एक क्लॉस्ट्रोफोबिक हॉरर अनुभव बन जाती है जहाँ इंसानी मजबूरी, अज्ञानता और अपरिचित भय की टक्कर होती है। छोटे कस्बे की दिनचर्या और रात की अज्ञात भयावहता के बीच जॉन की लड़ाई मानवीय हिम्मत और बचे रहने की आख़िरी चाहत का प्रतीक बन जाती है।
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