How to Get Ahead in Advertising
एक निराश और प्रतिभाशाली विज्ञापनकर्ता अपनी नौकरी और ग्राहकों के दबाव में धीरे-धीरे टूटता जाता है जब उसकी गर्दन पर एक बोलता हुआ फोड़ा उभर आता है। यह फोड़ा केवल शारीरिक विकृति नहीं, बल्कि उसके भीतर दबे गुस्से, आत्म-संदेह और सामजिक आक्रामकता की आवाज बन कर उभरता है, जो उसे विज्ञापन जगत की बनावट और दोहरे चरित्र की सच्चाइयों का सामना कराता है। फिल्म काले हास्य और तीखे व्यंग्य के माध्यम से दिखाती है कि किस तरह कॉर्पोरेट दबाव और रचनात्मक अस्मता का टकराव मानसिक विघटन तक ले आता है।
कहानी विज्ञापन उद्योग की चालाकी, उपभोक्तावाद और असली-नकली पहचान की स्याही में रंगी जाती है, जहाँ हास्य और भय एक साथ मिलकर सामाजिक आलोचना का रूप ले लेते हैं। दृश्यात्मक तंत्र और अप्रत्याशित घटनाएँ दर्शक को सोचने पर मजबूर करती हैं कि सफलता और मशीनरी के बीच इंसान कहाँ खो जाता है, और आवाज़ें — चाहे सिर्फ़ एक फोड़े की हों — किस तरह सामाजिक दमन का प्रतीक बन सकती हैं।
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