Blackout
एक छोटे कस्बे का कलाकार चार्ली अपने भीतर एक गहरे अंधकार से जूझता है। दिन में वह चुपचाप कैनवास पर रंग भरता है और अपने अकेलेपन में ढलता रहता है, पर रात के बारे में उसके पास धुंधली, भयानक यादें हैं। अक्सर पीने की लत उसे दिन और रात की सीमाओं को मिटा देती है, और उसे यह डर सताने लगता है कि कहीं वह खुद किसी भयानक बदलन का कारण तो नहीं—शायद एक भेड़िया जैसा रूप लेने वाला अस्तित्व।
चार्ली का संदेह, आत्म-आलोचना और अपराधबोध उसके रिश्तों में दरारें डाल देता है। वह अपने प्रियजनों से दूरी बना लेता है, झूठे बहानों और अचानक ग़ायब हो जाने के बीच फँस जाता है। उसके भीतर उठते पूछताछ उसके व्यवहार को अटपटा कर देते हैं: क्या उसने रात में जो किया, वह उसकी इच्छा से था या किसी अज्ञात ताकत का परिणाम? ये सवाल उसे और भी ज्यादा अकेला कर देते हैं, जबकि कस्बे में भी माहौल संदेह और भय से गूंजने लगता है।
सबसे भयावह बात यह है कि चार्ली की रातों की झलकियाँ उसके कला में जीवंत हो जाती हैं। खून-सीलन, टेढ़े-मेढ़े बनावट और कटे हुए किनारों वाले चित्र उसकी यादों के टुकड़ों को दर्शाते हैं—ऐसे दृश्य जो बताते हैं कि उसके रात के कृत्य कितने भयंकर हो सकते हैं। फिल्म यथार्थ और भ्रम के बीच की सीमा पर चलकर यह प्रश्न खड़ा करती है कि क्या हम अपने भीतर के राक्षसों को रोक पाते हैं, या वे धीरे-धीरे हमारी पहचान को निगल लेते हैं।
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