नाज़ी-आक्रांत अंतवर्प की संकुचित और भयभीत गलियों में दो युवा पुलिस अधिकारी एक ऐसे मोड़ पर खड़े दिखते हैं जहां हर निर्णय उनके आत्मसम्मान और जीवित रहने के बीच एक पतली रेखा बन जाता है। उन्हें सरकारी आदेशों का पालन कर नीति और व्यवस्था बनाए रखने का दबाव मिलता है, वहीं आत्मिक आवाज़ें और छुपे विरोधी नेटवर्क उन्हें अपनी इंसानियत बचाने के लिए खदेड़ते हैं। फिल्म इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में छोटे-छोटे चुनावों की तीव्रता और उन चुनावों के नंगी कीमतों को बारीकी से उजागर करती है।
कथा मनोवैज्ञानिक तनाव, वफादारी और पराजय के भावों के मध्य झूलती है, जहाँ साथियों, परिवार और व्यक्तिगत आदर्शों के प्रति उत्तरदायित्व से उत्पन्न द्वंद्व मुख्य प्रेरक शक्ति बन जाता है। दृश्य-चित्रण और चरित्र-निर्माण के ज़रिये यह फीचर युद्धकालीन नैतिक अस्पष्टता और इंसानी कमजोरियों की ऐसी परतें खोलता है जो लंबे समय तक दर्शक के दिमाग़ में गूँजती रहती हैं।