चालीस की उम्र में लेइला ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा अपने माता-पिता और चार भाइयों की देखभाल में बिता दिया है। परिवार में लगातार तकरार रहती है और आर्थिक तंगी, कर्ज और बाहरी दबावों की वजह से रिश्तों में दरारें गहरी होती जाती हैं; घर बेचने और अस्तित्व बचाने की चुनौतियाँ हर किसी के नैतिक और भावनात्मक दायरों को परखती हैं। भाई-बहनों की अलग-अलग महत्वाकांक्षाएँ, भय और उम्मीदें परिवार को जटिल निर्णयों की ओर धकेलती हैं, जबकि लेइला बार-बार खुद को बलिदान करते हुए रिश्तों की जिम्मेदारी संभालती नजर आती है।
फिल्म व्यक्तिगत बंधनों और वृहद सामाजिक परिस्थितियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है और संकट के समय मानवीय गरिमा, लाचारी और साहस के प्रश्न उठाती है। यह कहानी पारिवारिक नाटक के साथ-साथ एक तीव्र सामाजिक टिप्पणी भी पेश करती है, जो दर्शक को चमकदार भावनात्मक दृश्यों और करारी वास्तविकता की याद दिलाती है।