बदले की लत से ग्रस्त एक समाज ने गलती से अपना अगला निशाना चुन लिया है, और नतीजा यह हुआ कि एक युवा को रात भर जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है जब ऑनलाइन भीड़ सीधे उसके दरवाज़े तक पहुँच जाती है। झूठे आरोपों, अफवाहों और सोशल मीडिया की आग में घिरा वह युवक अकेलापन, डर और बचने की उम्मीदों के बीच लगातार लड़ता रहता है।
फिल्म सिर्फ़ थ्रिल से भरी नहीं है, बल्कि यह डिजिटल भीड़-तंत्र, सार्वजनिक शर्म और न्याय की अस्थिरता पर कड़ा सवाल उठाती है — जहाँ एक क्लिक किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है। बढ़ती घुटन, अप्रत्याशित मोड़ और इंसानी कमजोरियों की तीखी पड़ताल इसे भावनात्मक और सामाजिक रूप से गहन बनाती है।