शार्लॉट अपनी जिंदगी में एक तरह की सुस्ती और खालीपन महसूस कर रही होती है, जब एक रात उसके और एडम के बीच अचानक एक तीव्र रोमांस खिल उठता है और वह उसके साथ एक उजले भविष्य की कल्पनाएँ करने लगती है। लेकिन एडम अचानक गायब हो जाता है, और शार्लॉट को यह समझ नहीं आता कि क्या हुआ — आखिर वह कैसे और क्यों दूर हो गया। इस असमंजस भरे मोड़ में नाटक की भावनात्मक जटिलताएँ उभर कर आती हैं और दर्शक भी शार्लॉट के अकेलेपन और उम्मीदों से जुड़ जाते हैं।
जब उसे पता चलता है कि एडम घातक बीमारी से जूझ रहा है, तो शार्लॉट उसकी आखिरी दिनों को अर्थपूर्ण और भरपूर बनाने का निर्णय लेती है। दोनों मिलकर छोटे-छोटे सुखों, खुले दिल की बातचीत और सहज साथ से उन अनमोल पलों को जीते हैं जो जीवन और मौत के बीच के रिश्ते को नया अर्थ देते हैं। यह फिल्म प्यार, पक्षपात रहित करुणा और शोक के बीच संतुलन की कोमल कहानी है — जो धीरे-धीरे उम्मीद और स्वीकार्यता की तरफ ले जाती है।