एक तीसरी पीढ़ी के किसान, पर्सी श्माइज़र, एक बड़े कॉर्पोरेट दिग्गज द्वारा उन पर उनके पेटेंटेड बीजों के कथित उपयोग का आरोप लगने पर कानूनी संकट में फंस जाता है। सीमित संसाधनों और समाजिक अलगाव के बावजूद वह अपनी ज़मीन, आजीविका और किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए जुझारू लड़ाई छेड़ देता है, जिससे उसकी निजी ज़िन्दगी और समुदाय दोनों पर गहरा असर पड़ता है।
फिल्म इस व्यक्तिगत संघर्ष को व्यापक राजनीतिक और नैतिक प्रश्नों से जोड़ती है—जैव-प्रौद्योगिकी, पेटेंटिंग, और कंपनी-शक्ति के किसानों पर होने वाले प्रभावों की पड़ताल करती है। यह कहानी अदालत की दलीलों से आगे जाकर छोटे किसान, सामुदायिक एकजुटता और एक साधारण आदमी की हिम्मत व गरिमा का संवेदनशील चित्र प्रस्तुत करती है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती है।