तीन महिलाओं को एक सुनसान घर में बंधक बनाकर रखा जाता है, जहाँ हर कोना डर और अनिर्णय से भरा रहता है। कैदखाने की कठोर रूटीन, निगरानी और उनको नियंत्रित करने वाले क्रुर लोगों के खेल से वातावरण घनघोर और असहनीय हो जाता है। छोटे-छोटे संकेतों, रिश्तों के टूटने और किसी भी पल बिगड़ने वाली स्थिति ने हर निर्णय को भारी बना दिया है।
फिल्म उनकी बचने की कोशिशों को नाटकीय और कॉकून-सी तंग हवा में दिखाती है, जहाँ भरोसा, धैर्य और एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति ही उनका सबसे बड़ा हथियार बनते हैं। सस्पेंस और मनोवैज्ञानिक दबाव की लगातार लहरें दर्शक को आखिरी पल तक बांध कर रखती हैं, और यह बताती हैं कि मानव आत्मा चरम स्थितियों में भी उम्मीद और संघर्ष कैसे कायम रखती है।