1829 की पृष्ठभूमि में यह फिल्म निकोलाई गोगोल को एक युवा तृतीय विभाग के क्लर्क के रूप में दिखाती है, जो अपने लेखन से खुद नाखुश है और अपनी पुस्तकों को जलाकर उन पर करुणा और निराशा दोनों व्यक्त करता है। उसे विचित्र और भयानक दृष्टांत सताते हैं, और जब एक ग्रामीण कस्बे में युवतियों की रहस्यमयी तथा निर्दयी हत्याओं का सिलसिला शुरू होता है तो गोगोल खुद को एक खौफनाक पहेली के बीच पाता है। फिल्म में अतीत और लोककथाओं के तत्व मिलकर एक तनावपूर्ण और सायास माहौल बनाते हैं, जहाँ असल और अलौकिक की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं।
कथा में गोगोल अनजाने खतरों से जूझते हुए उन शक्तियों का सामना करता है जो न केवल कस्बे को बल्कि उसकी अपनी पहचान को भी चुनौती देती हैं। कथानक में कल्पना, रहस्य और हॉरर का मिश्रण है, जो दर्शक को 19वीं सदी की रूसी पृष्ठभूमि में खींच लेता है और गोगोल की आंतरिक लड़ाई तथा उसकी लेखकीय नियति की झलक दिखलाता है।