अमेरिकी प्लूटोक्रेट यू.एस. बेट्स अपने बिगड़े हुए बेटे एरिक को सालाना मिलने के दौरान एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में ले जाता है और उसे वहाँ से जो चाहे चुनने की आज़ादी देता है। बच्चे की फरमाइश अनोखी होती है: वह एक काला जैनिटर, जैक ब्राउन, चुनता है और उसे अपना खेल-खिलौना बनाने की मांग करता है। इस अजीबोगरीब शर्त से कहानी एक हास्यप्रधा आरंभ लेती है, पर उसके भीतर मानवीय गरिमा और असमानता की गहरी चोटें छिपी होती हैं।
आरंभ में जैक के लिए यह केवल अपमान और तुच्छता में जीने जैसा होता है — उसे खिलौने की तरह देखा जाता है, मज़ाक बनाया जाता है और उसकी इज्जत को ठेस पहुँचती है। हालांकि, समय के साथ उसका धैर्य, आत्मसम्मान और समझदारी एरिक के भीतर बदलाव की चिंगारी जगा देते हैं। खेल-खिलौने की स्थिति से उठकर जैक असल में बच्चे को दोस्ती, सच्चाई और साथी के मायने सिखाता है, और एरिक अकेलेपन में बदलकर संवेदनशील और वक्त की नब्ज पहचानने वाला बन जाता है।
फिल्म हल्के-फुल्के हास्य के साथ सामाजिक आलोचना को जोड़ती है — अमीरी व सत्ता का अभिमान, नस्लीय और वर्गीय भेदभाव और इंसानी गरिमा की कीमत पर सवाल उठती है। रिचर्ड प्रायर की प्रस्तुति में शक्ति और कोमलता दोनों के रंग मिलते हैं, जबकि कहानी अंततः दिल छू लेने वाली और प्रेरक बनकर उभरती है। यह फिल्म हँसी के पीछे छिपे दर्द और सच्चे रिश्तों की अहमियत की याद दिलाती है।