यह डॉक्यूमेंट्री 2013 की कुख्यात "पूप क्रूज़" की घटना को ज़ोरदार और बेबाक अंदाज़ में वापस लाती है: एक इंजन आग के बाद 4,000 यात्री समुद्र में बिजली और नलों के बिना फंसे रहते हैं, और उस अराजकता के बीच जिन्दगी कैसे आगे बढ़ती है। फिल्म में यात्रियों और क्रू के मुखपत्र, बचावकर्मियों और अधिकारियों के इंटरव्यू, सामाजिक मीडिया क्लिप और भयंकर किन्तु कभी-कभी कड़वे हास्य से भरे आर्काइव फुटेज का मिश्रण है, जो घटनाक्रम के भयावह और मानवीय पहलुओं को सामने लाता है।
टोन में काला हास्य और सहानुभूति दोनों हैं: यह केवल निन्दा नहीं करती बल्कि प्रणालियों की अनदेखी, नियमन की ढील और मीडिया-स्पेकटेकल का भी विश्लेषण करती है। भीड़ में बंटे अनुभव—घबराहट, सहयोग, हताशा और कुछ जगहों पर छोटी-छोटी मानवीय जीतें—फिल्म को एक सामूहिक मनोचित्र बनाते हैं, जो असफलता के बीच भी इंसानी जूतियों की कहानी बताता है।