कालेन्दर अपने पिता से मिली छोटी-सी रेस्टोरेंट को संभालते हुए जी-जान लगा रहा है, लेकिन हाल के दिनों में कारोबार गिरता जा रहा है और उसे अचानक खबर मिलती है कि भवन का मालिक उसकी दुकान बेचने का फैसला कर चुका है। परिवार की यादें और पुरानी परंपराएँ यही रसोई में जिंदा हैं, और कालेन्दर के सामने न सिर्फ रोज़गार बल्कि पहचान भी दांव पर लगती है। फिल्म में दोस्ती और नसीब के टकराव को सादगी और संवेदनशीलता के साथ दिखाया गया है।
इसी बीच Öcü का अचानक प्रवेश कालेन्दर की जिंदगी में उम्मीद और अराजकता दोनों लेकर आता है। दोनों अलग-अलग जीवनशैलियों और आदतों के साथी होते हुए भी एक लक्ष्य के लिए – रेस्टोरेंट को बचाने के लिए – तरह-तरह की योजनाएँ और शरारतें करते हैं, जिनमें हास्य और तीखी भावनाएँ दोनों मिलती हैं। यह कहानी केवल एक जगह को बचाने की नहीं बल्कि एक विरासत, समुदाय और अपनों के साथ जुड़ने की भी है, जो छोटे-छोटे प्रयासों से बड़ी ताकत जुटा लेती है।