यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म ग्रेनफेल टावर में हुए भयानक आगजनी की घटनाओं को बचे लोगों, चश्मदीदों और विशेषज्ञों की आवाज़ के माध्यम से सामने लाती है। फिल्म में आर्काइव फुटेज, व्यक्तिगत साक्षात्कार और विशेषज्ञ विश्लेषण के जरिये यह दिखाया गया है कि कैसे एक रिहायशी टावर में आग ने परिवारों की ज़िंदगियाँ बदल दीं और तुरंत बाद शुरू हुई जाँच ने कितने सवाल खड़े कर दिए।
दृश्यों में शोक और गुस्सा दोनों का मिश्रण मिलता है — पीड़ितों की कहानी, सामुदायिक विरोध और जवाबदेही की मांगें साफ़ उभर कर आती हैं। फिल्म न सिर्फ़ त्रासदी की घटनावली बताती है, बल्कि प्रणालीगत कमियों, नियमों की उदासीनता और न्याय की तलाश पर भी प्रकाश डालती है, जिससे दर्शक सोचने और बदलने के लिए प्रेरित होते हैं।