श्रिरेनु परंपरा की कसौटी पर पला-बढ़ा एक संवेदनशील युवा है, जबकि मधु अपनी शर्तों पर जीने वाली, बेबाक और आज़ाद आत्मा है। जब उनका रास्ता मिलता है तो एक नाज़ुक, कभी-कभी संकोची और बहुत ही प्यारा प्रेम पलकर उभरता है — छोटे-छोटे अहसास, चुपचाप की गई कोशिशें और उन लमहों की मासूमियत जो दोनों की दुनिया को करीब लाती है। फिल्म में उनके बीच के रसायन को सरल लेकिन सूक्ष्म दृश्यों और किरदारों की मिलती-जुलती दयनीयताओं के जरिए दिखाया गया है।
यह कहानी सिर्फ प्रेम की नहीं, बल्कि समाज की उन दीवारों की भी है जो परंपरा और पितृसत्तात्मक रिवाज़ों से बनती हैं। मधु और श्रिरेनु की मधुर जद्दोजहद यह बताती है कि व्यक्तिगत आज़ादी और पारिवारिक दायित्व के बीच संतुलन आसान नहीं होता; पर छोटी-छोटी चुनौतियाँ, समझौते और साहस ही किसी संबंध को परिभाषित करते हैं। फिल्म अंत में कठोर विकल्पों के बजाय उम्मीद और आपसी समझ की झलक छोड़ती है, जिससे दर्शक दोनों किरदारों के संघर्ष और उनकी नाज़ुक जीत के साथ बाहर निकलते हैं।