डेविड ब्रायसन अपनी लड़की को स्नानघरे में खून में लथपथ पाकर टूट जाता है और निशानियाँ उसे भूतिया सपनों में घेर लेती हैं। अकेलेपन और अपराधबोध से जूझते हुए वह एक सेल्फ‑हेल्प समूह में जाता है जहाँ उम्मीद की एक किरण दिखती है, लेकिन जल्द ही उसकी जिंदगी में रहस्यमयी और संस्कारविहीन महिलाओं का एक समूह आता है जो उसकी बेटी को वापस लाने का वादा करता है। फिल्म गहरे भावनात्मक दर्द और अलौकिक भय के बीच एक नाजुक संतुलन बनाते हुए दर्शक को लगातार शक और आशा के बीच रखती है।
जैसे‑जैसे कहानी आगे बढ़ती है, डेविड के निर्णय सिर्फ उसकी अपनी किस्मत नहीं बल्कि उसकी मृत बेटी की आत्मा के भविष्य को भी निर्धारित करते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक हॉरर है जो मातृत्व, विश्वास और बलिदान की सीमाओं को चुनौती देता है, और दिखाता है कि कब इंसान अपनी चेतना खोकर अंधेरे रास्तों पर चलने को तैयार हो जाता है। रहस्य, तनाव और नैतिक दुविधा से भरी यह फिल्म लंबे समय तक दर्शकों के दिल और दिमाग में उलझन छोड़ जाती है।