परित्याग और शोक के बीच घूमती यह कहानी तब शुरू होती है जब दादा की मौत के बाद एक पिता अपनी भावनाओं से जूझते हुए अपने बेटे को मौत की अर्थ खोजने के लिए एक तरह की यात्रा पर भेजता है। पृष्ठभूमि में सालाना होने वाला भूतिया घर बनाना चल रहा होता है, जो केवल एक त्योहार नहीं बल्कि परिवार की पुरानी परंपराओं और यादों का प्रतीक बन जाता है। लड़के का यह सफर न केवल खोई बातें समझने का होता है बल्कि बड़ों की चुप्पी और अनकहे दर्द की परतें भी खोलता है।
फिल्म में भय और कोमलता का अनूठा मिश्रण दिखता है — भूतिया घर के रंग-रूप और छोटी-छोटी घटनाओं के जरिए जीवन, मृत्यु और जुड़ाव की बारीकियों को बयाँ किया गया है। यह एक संवेदनशील Coming-of-age कथा है जो शोक को मानवीय रूप में दिखाती है और बताती है कि कैसे परंपराएँ और कहानियाँ रिश्तों को जोड़कर उम्मीद की चिंगारी जगा देती हैं।