जैज़ी एक नाजुक पड़ाव पर खड़ी लड़की की कहानी है, जहाँ बचपन के खिलौनों और जवानी की उम्मीदों के बीच का फासला महसूस होता है। जब उसकी सबसे अच्छी दोस्त परिवार के साथ शहर छोड़ देती है, तो जैज़ी को खालीपन, यादों की गूँज और अचानक मिली आज़ादी का सामना करना पड़ता है। छोटी-छोटी चीज़ें — साझा किए गए चुटकुले, स्कूल की राहें, और उन्हीं पलों की अनुपस्थिति — उसे भीतर से हिला देती हैं और उसे सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि वह अब कौन बनना चाहती है।
फिल्म धीरे-धीरे दिखाती है कि कैसे जैज़ी इन खोए हुए पलों को अपनाकर अपनी पहचान का एक नया पहलू ढूँढती है: अकेले देर तक जागना, अलग फैसलों का साहस, और खुद के लिए खड़े होना। यह केवल नुकसान की कहानी नहीं है बल्कि पहली बार मिलने वाली स्वतंत्रता की भी है — छोटे-छोटे अनुभव जो उसे बड़ी बनाते हैं। संवेदनशील अंदाज़ में बनी यह फिल्म परवरिश और आत्म-खोज की उस सीमा को पकड़ती है जहाँ बचपन का अंत और जवानी की शुरुआत मिलती है, और आशा की नर्म धुन हमेशा साथ रहती है।