शेफ का जीवन एक अनपेक्षित टनटनाहट से बिखर जाता है — आधी रात के बर्तन, पकवानों की रेसिपी और उसके नियमों से भरे दिनचर्या के बीच एक छोटी सी चाइम बार-बार बजने लगती है। शुरुआत में वह इसे अनदेखा कर देता है, मगर हर बार की खनक के साथ उसके अंदर एक अनामकित बेचैनी और डर पनपने लगता है। रसोई की रोशनी फीकी पड़ती है, आदेश गड़बड़ा जाते हैं, और सामान्य आवाज़ें भी असहज हो उठती हैं।
जैसे-जैसे चाइम की मौजूदगी घनी होती है, शेफ के भीतर पुरानी यादें और दबी इच्छाएँ सतह पर आ जाती हैं — क्या यह सचमुच कोई अलौकिक घटना है या उसके मन का टूटना? रिश्ते तंग हो जाते हैं, सहकर्मी शक में पड़ते हैं, और भोजन बनाना भी एक जोखिम भरा कार्य बन जाता है। फिल्म सुनने और न दिखने के बीच की महीन रेखा पर चलती है, दर्शक को हर खनक के साथ बढ़ती अनिश्चितता में घेरती है।
Chime का साउंड डिज़ाइन और मंद-धीमी कतरनें भावनात्मक दबाव पैदा करती हैं, जिससे क्लाइमैक्स तक पहुंचते-पहुंचते एक घुटन भरा सस्पेंस बन जाता है। यह सिर्फ डर का अनुभव नहीं, बल्कि पहचान, नियंत्रण और वास्तविकता पर सवाल उठाने वाली एक मनोवैज्ञानिक यात्रा है जो अंत तक अनसुलझी परछाइयों को साथ लेकर चलती है।