1944 के प्रशांत महासागर में, एक सुनसान द्वीप पर एक जापानी सैनिक और एक ब्रिटिश युद्धबंदि फंसे हुए हैं, जहाँ समुद्र की लहरों के बीच अज्ञात खतरे का साया छाया हुआ है। खाली रेत और घनी जंगली हरियरियों के बीच उनका संघर्ष केवल भौतिक संसाधनों के लिए नहीं, बल्कि किसी प्राणी-सा भयावह शिकार के साथ जीवित रहने का भी है; रात के अंधेरे में हर आवाज़ संभावित मौत का संकेत बन जाती है। फिल्म खतरों की घनती, भय की तेजी और द्वीप की उग्र प्रकृति को सजीव तरीके से प्रस्तुत करती है।
दोनों पुरुष, जो युद्ध में एक-दूसरे के कट्टर शत्रु रहे हैं, अब अस्तित्व के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। भाषा और सांस्कृतिक दीवारें टूटती हैं, और धीरे-धीरे एक कच्चा समझौता और सहकार्य जन्म लेता है—लेकिन भरोसा उतना ही नाजुक है जितना कि उनका आश्रय। नाटकीय तनाव, मानवीय कमजोरियाँ और जीवित रहने की अनकही कीमतें इस कहानी को सिर्फ हॉरर तक सीमित नहीं रहने देतीं, बल्कि मानवीय संबंधों और दायित्वों की गहरी पड़ताल भी कराती हैं।