एरॉल मॉरिस की यह फिल्म जासूसी उपन्यासों के मास्टर डेविड कॉर्नवेल, जिन्हें साहित्य में जॉन ले कार्रे के नाम से जाना जाता है, के अनकहे पहलुओं को सामने लाती है। इंटरव्यू और आर्काइव फुटेज के माध्यम से यह फिल्म उनके निजी जीवन, जासूसी की दुनिया और साहित्यिक साख के बीच के जटिल रिश्तों की तह खोलती है। कॉर्नवेल की कहानी केवल एजेंटों और मिशनों तक सीमित नहीं रहती; यह विश्वसनीयता, राजनीति और नैतिक द्वंद्व की उन परतों को भी उजागर करती है जिन्होंने उनके लेखन को आकार दिया।
मॉरिस का दृष्टिकोण करीबियों जैसा है—सख्त सवाल, सूक्ष्म व्यंग्य और भावनात्मक बारीकियों के साथ—जिससे दर्शक एक वृद्ध लेखक के आत्मनिरीक्षण और कटु-मीठी यादों की गवाही के करीब आ जाते हैं। फिल्म में व्यक्तिगत किस्सों, काल्पनिक किरदारों और वास्तविक राजनीतिक घटनाओं का ऐसा मिश्रण है जो ले कार्रे की कला और उसके पीछे के मानव को समझने में मदद करता है, और बताता है कि किस तरह एक जीवन ने साहित्य को प्रभावित किया और साहित्य ने उस जीवन को वापस परिभाषित किया।