एक पूर्व सैनिक स्नाइपर दूरस्थ खेत पर सादे नागरिक जीवन में वापस घुलने की कोशिश करता है, पर युद्ध की यादें और PTSD की भयावह अनिश्चितता उसकी हकीकत को धुंधला कर देती हैं। तन्हाई और शान्ति के बीच वह अपनी पहचान, सुरक्षा और रिश्तों को लेकर लगातार संशय में रहता है, जैसे हर आवाज़ और हर सिलसिला उसके लिए नए खतरे का संकेत हो।
फिल्म मनोवैज्ञानिक तनाव और भावनात्मक जटिलताओं को धीरे-धीरे उजागर करती है, जहाँ बाहरी शान्ति अंदर के तूफ़ान को और गहरा दिखाती है। यह कहानी युद्ध के गहरे प्रभाव, आघात से उबरने की घबराहट और भरोसा फिर से हासिल करने की संवेदनशील जद्दोजहद को नाटकीय व भावनात्मक तरीके से पेश करती है।