1940 के दशक की एक कटु ठंडी स्कॉटिश द्वीप की मुनादी पर स्थित सेंट ऑगस्टिन के आश्रम में तेज तूफ़ान की आवाज़ के बीच नन अपनी रोज़मर्रा की तैयारी में व्यस्त हैं। एक सुबह दरवाज़े पर एक छोटा सा बच्चे का टोकरा छोड़ दिया जाता है और इस घटना से आश्रम में हवाओं की तरह खौफ फैल जाता है। सिस्टर एग्नेस तुरंत ही इस नन्हें को शैतान मान बैठती है और उसे मारने की ठान लेती है, जिससे विश्वास और भय के बीच एक भयंकर टकराव की चिंगारी सुलग उठती है।
जब एग्नेस को बंद कर दिया जाता है तो तूफ़ान और भी ज़्यादा हिंसक हो जाता है और आश्रम में भयावह घटनाओं की एक कड़ी शुरू हो जाती है। छोटी-छोटी घटनाएँ, अस्पष्ट आवाज़ें और बढ़ती शंका ननों के मनोबल को हिलाने लगती हैं; हर प्रार्थना के साथ उनकी आस्था पर प्रश्न उठते हैं और वास्तविकता का धुंधला होना शुरू हो जाता है। बाहरी दुनिया से कटे इस वातावरण में आश्रम एक बंद कैनवास बन जाता है जहाँ पर विश्वास, पागलपन और संदेह के रंग आपस में मिलते हैं।
सिस्टर एलीनोर, जो खुद किसी तरह पापबोध और पश्चाताप की यातना से गुजर रही हैं, को न केवल बच कर निकलना है बल्कि अपने भीतर की लड़ाई भी जीतनी है। फिल्म धीरे-धीरे एक नैतिक और आध्यात्मिक जाँच में बदल जाती है जहाँ हर निर्णय की कीमत है और अपराध-बोध, बलिदान तथा मुक्ति के सवाल सामने आते हैं। कड़क हवा, संकरे गलियारों और ननों की टूटती आस्थाओं के बीच यह कहानी दर्शकों को एक गहरे, असहज और चिंतनशील अनुभव में ले जाती है।