दो बचपन के साथी, जो शाओलिन में साथ पले-बढ़े थे, एक मार्शल आर्ट प्रतियोगिता में धोखाधड़ी के झूठे आरोपों में फँसकर मठ से निष्कासित कर दिए जाते हैं। अलग होते ही उनकी जिन्दगियाँ अलग मोड़ लेती हैं: एक शांतचित्त योद्धा बनता है जबकि दूसरा सत्ता और राजनीतिक उथल-पुथल में झुक जाता है। वर्षों बाद एक गृहयुद्ध में दोनों विरोधी फलक पर दिखते हैं, जहाँ पुराने बंधन और पुरानी गलतफहमियाँ नए घाव खोल देती हैं।
जब विश्वासघात उनके बीच दाखिल होता है तो बचपन की दोस्ती से लेकर महारत की कच्ची धार तक सब परखे जाते हैं और अंततः उनका टकराव केवल शब्दों का नहीं बल्कि हाथों का होता है। तेज़-तर्रार एक्शन, भावनात्मक तनाव और भाईचारे की जद्दोजहद के साथ यह कहानी न्याय, पश्चाताप और आत्म-खोज के ज़रिए अपने चरम पर पहुँचती है।