यह गहन और भावनात्मक डॉक्यूमेंट्री अगस्त 2021 के 18 निर्णायक दिनों के दौरान काबुल हवाई अड्डे पर जमीन पर मौजूद लोगों द्वारा रिकॉर्ड की गई अब तक न देखी गई अभिलेखीय फ़ुटेज को प्रस्तुत करती है। कैमरा भीड़ की हड़बड़ी, डर और साहस के उन क्षणों में घुसकर उन चेहरों की कहानियाँ दिखाता है जो अस्थायी आशा और अराजकता के बीच फँस गए थे।
फिल्म में विशेष साक्षात्कार और घटनास्थल से मिली आवाजें शामिल हैं — शरणार्थियों, सैनिकों, पत्रकारों और स्थानीय नागरिकों की — जो इन दिनों की संवेदनशीलता और जटिलता को बयां करती हैं और यह दर्शाती हैं कि व्यक्तिगत अनुभवों ने बड़े राजनीतिक बदलावों को मानवीय दृष्टिकोण से कैसे उजागर किया। तीव्र विजुअल और ध्वन्यात्मक समागम दर्शक को सीधे घटनास्थल पर खींच लाता है, जिससे यह सिर्फ जानकारी देने वाली फिल्म नहीं बल्कि एक मार्मिक गवाही बन जाती है।